इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के Front में लोहे की जाली क्यों लगाये जाते है जबकि डीजल लोकोमोटिव में नहीं।

आपने देखा होगा की इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के आगे (जंहा ड्राइवर बैठते है) लोहे की जाली लगा हुआ होता है , जबकि डीजल लोकोमोटिव के आगे यह जाली नहीं लगा हुआ रहता है।

आइये जानते है यह क्यों लगा हुआ रहता है?

जैसा की आप सब को पता होगा इन्डियन रेलवे में 2 तरह के लोकोमोटिव यूज़ किये जाते है पहला इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव  दूसरा डीजल लोकोमोटिव।

दोनों लोकोमोटिव की बनावट अलग होती है। इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में फ्रंट में ही लोको कैब होता है जंहा लोको पायलट रहते है जबकि कुछ डीजल लोकोमोटिव को छोड़ कर बाकि सारे डीजल लोकोमोटिव Long Hood वाले होते है इस लोकोमोटिव में लोको पायलट कुछ दूरी पर बैठते है।

जैसा की आप सब को पता होगा भारत में ऐसी बहुत घटनाएं होती रहती है कि किसी ने चलती ट्रेन पर पत्थर फेंक दिया या और भी बहुत कुछ। इन्ही सब घटनाओं से बचने के लिए लोकोमोटिव के कैब में फ्रंट वाले सीसे में लोहे का जाली लगा हुआ रहता है जिसे रेलवे की भाषा में बोर्ड गार्ड कहा जाता है। यह जाली लोको पायलट के सेफ्टी के लिए लगाया जाता है , क्योंकि इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में लोको पायलट सीसे के ठीक पीछे रहते है , अगर कोई सीसे पे पत्थर फेंकता है तो इससे सीसा टूट सकता है और लोको पायलट को चोट लग सकती है और लोको पायलट को चोट लगेगी तो बड़ी घटना घट सकती है। जाली लगाने एक कारण यह भी है कि अगर कोई पक्षी तेजी से उड़ते हुए लोकोमोटिव के सीसे से टकराती है तो सीसा टूट सकता है और लोको पायलट को चोट लग सकती है।

ऐसा नहीं है कि डीजल लोकोमोटिव में लोहे की जाली नहीं लगायी जाती है। शायद आपको पता होगा की डीजल लोकोमोटिव भी दो तरह के होते है।

एक डीजल लोकोमोटिव में लोको पायलट सीसे के ठीक पीछे बैठते है और सीसे के ठीक पीछे बैठने के कारण इसमें भी लोहे की जाली लगाया जाता है और एक डीजल लोमोटिव जो Long Hood वाले होते है उसमें लोको पायलट कुछ दूरी पर बैठते है जिसमें सीसे टूटने से भी लोको पायलट को कुछ नहीं होगा।

तो यही कारण है कि इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में फ्रंट में सीसे की जाली लगायी जाती है और डीजल लोकोमोटिव में नहीं लगायी जाती है।

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